जीवन जीने का गूढ़ रहस्य?
दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जिसने अध्यात्म में सबसे ज्यादा कीर्तिमान स्थापित किए हैं| विश्व के सभी देशों में जो अध्यात्म पर काम हो रहा है उसकी शुरुआत दूसरे देशों में भी भारत के ही महापुरुषों ने की है|
श्री राम जी से लेकर श्री विवेकानंद जी के जीवन सफर तक भारत ने ऐसे हजारों महापुरुष दिए हैं जिनके विचार आज भी विश्ववासियों को प्रेरित कर रहे हैं| आज विश्व भर के सभी नौजवान उन्हीं के बताए रास्तों पर चलकर ही बड़े व महान कार्यो को सफलतापूर्वक कर पा रहे हैं| भारत की भूमि शुरुआत से ही तपस्वियों की भूमि रही है व इसी कारण भारतवासी बाहरी आक्रांताओं के दर्दनाक जुल्म सहकर भी ज्यों के त्यों खड़े रहे व भारत को पुनः आजाद करवा पाए| आज विकास के मामले में भारत पूरी दुनिया में परचम लहरा रहा है, लेकिन आज तपस्वियों के इस देश के लोग अंधविश्वास व पाखंड का शिकार होने लगे हैं| आज पूरा मनुष्य समाज स्वयं तपस्या करने की बजाय सिर्फ कथाएं सुनने तक ही सीमित हो गए हैं | कथाएं सुनना अच्छी बात है लेकिन जब तक सुना हुआ ज्ञान मनुष्य आचरण में नहीं लाएगा तब तक सब सुना सुनाया बेकार हो रहा है| स्वयं तपस्या ना करने की वजह से पूरा मानव समाज अध्यात्म, धर्म व सत्कर्मों की परिभाषा ही भूलने लगा है| चारों ओर पाखंडियों व चमत्कारीयों की पूजा हो रही है व तपस्वियों का तो जैसे अकाल ही पड़ गया है |आज देश में ही नहीं पूरे विश्व में भी मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ने का एकमात्र कारण सिर्फ तपस्या की कमी ही है|
तपस्या का अर्थ व महत्व :- हे विश्ववासियो मनुष्य जब तक खुद किसी विचार को लेकर साधना/तपस्या शुरू नहीं करेगा तब तक वह कितनी भी समाज सेवा, पशु सेवा, देश सेवा या कितना भी पूजा पाठ कर ले वह समाज में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं ला पाएगा|
तपस्या का अर्थ यह नहीं कि आप घर परिवार को छोड़कर कहीं जंगल में जाकर बैठ जाओ तपस्या का मतलब है अपनी चेतना के स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रयास करना व अपने इस महान विचार पर दृढ़ रहना | चाहे जीवन में कोई भी बाधा आए, चाहे पूरा संसार ही उसके खिलाफ खड़ा हो जाये, चाहे जीवन ही दाव पर क्यों ना लग जाए फिर भी अपने इस महान विचार पर अडिग रहना ही तपस्या है|
हे मनुष्यो, मनुष्य के लिए चेतना स्तर को ऊपर उठाना उतना ही जरूरी है जितना सांस लेना| आज पूरे विश्व में जितने भी महापुरुष हुए हैं वह सब चेतना स्तर को ऊपर उठाने का ही परिणाम है | चेतना स्तर के ऊपर उठने से मनुष्य में समझ, शांति, प्रेम व आनंद का स्तर अपने आप बढ़ जाता है व मनुष्य की सभी क्षमताएं विकसित होती है व वह मनुष्य एक फूल की तरह पूरी दुनिया को खुशबू प्रदान करता है अर्थात वह एक दिन आत्म साक्षात्कार करके हमेशा के लिए आनंदित हो जाता है| इसके विपरीत चेतना स्तर को गिराने वाला मनुष्य अंदर से कुंठित रहता है अर्थात उसका पूरा जीवन मुरझाने लगता है| अशांति, असंतोष, डर, कायरता, घृणा, द्वेष, क्रोध,लोभ, मोह व अहंकार आदि हजारों राक्षस प्रवृत्तियां उसे घेर कर उसका पूरा जीवन बर्बाद कर देती है| चेतना स्तर के उत्थान को कायम रखने के लिए मेरे गुरुदेव द्वारा बताया एक महा वाक्य आज मैं आपसे शेयर कर रहा हूं जिस पर साधना करके एक साधारण मनुष्य भी श्री राम, श्री कृष्ण,कबीर जी, गुरु नानक देव जी, गुरु जंभेश्वर जी, श्री रामकृष्ण परमहंस जी व विवेकानंद जी की तरह पूर्ण विवेक व परम आनंद को प्राप्त करके पूरे विश्व के लिए एक आदर्श पेश कर सकता है |
“धर्म के रास्ते पर चलते समय किसी भी डर, दबाव या मोह के कारण अपने कर्तव्य कर्मों से समझोता करने वाला मनुष्य अपने परम चेतना स्तर को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता व इसके विपरीत जो हर जोखिम को सहन करके भी धर्म को नहीं छोड़ता उसका कभी नाश नहीं हो सकता” |
इस संसार के सभी
पारिवारिक,सामाजिक,राजनैतिक, व्यवसायिक व पदाधिकारी आदि सभी मनुष्यों को चाहिए कि किसी भी कारण से वह अपने जीवन में अन्याय, अत्याचार, पक्षपात, असमानता, असमर्थतता, व्यभिचार, धोखाधड़ी व हिंसा आदि चेतना स्तर को गिराने वाले कार्यों को न करें व ना ही ऐसे कार्य करने वालों का साथ दें, बल्कि इसकी जगह अपने जीवन में ईमानदारी, न्याय, समानता, निडरता आदि चेतना स्तर को ऊपर उठाने वाले कार्य ही करें
धन्यवाद
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